Lockdown – आत्ममंथन 14
प्रत्येक नासमझी और गलती का एक सिरा हमेशा आरंभ में छोटा होता है और कोई भी गलती बड़ी तभी बनती है जब उसे छोटी से ही संभाल न लिया जाये। चीजों के साथ या घटनाओं के साथ गलती बहुत भारी गलती नहीं बन जाती परंतु मानव मन के साथ उसके हृदय के साथ जब पूर्णतया साथ नहीं हो पाता तो सब कुछ एक जंगल में तबदील हो जाता है। जंगल, जहां कोई भी नियम-कानून नहीं चलता। जिसका मन होता है या बल होता है वह अपनी इच्छानुसार कार्य करता है और दूसरों पर हुकूमत करता है। और इसी जंगल राज का परिणाम कभी भी सुखद नहीं होता। क्योंकि जंगल में पशुओं, पक्षियों का राज होता है।
वे कोई नियम में नहीं बंधते। परंतु इंसान नियमों में परम्पराओं में बंधे होते हैं। और जब ये नियम बोझ बन जाते हैं, अनुशासन बेकार लगने लगता है तो इंसान अपने आप से अपना नियंत्रण खोने लगता है।
और ये सब आरंभ होता है हमारे बचपन से जब हर बच्चा एक कच्ची मिट्टी की भांति कच्चे मन का होता है और वे छोटी-छोटी गलतियां करता है और उन गलतियों को जब घर में सब नजरअंदाज करते हैं तो उसका साहस खुल जाता है और वे इस से भी बड़ी गलती करने की सोच लेता है। इसी से एक नये इंसन की नींव पड़ जाती है। अगर इसी कच्ची मिट्टी को कच्चे मन को घर में माता-पिता पढ़ लें तो वह कभी गलत दिशा में नहीं जायेगा। नहीं तो यह एक छोटी गलती छोटे से भोले मन को बड़े होकर शातिर अपराधी या नामी चोर बना देती है। कभी-कभी यह नादान-सी गलती बड़े होकर एक गैंगस्टर की नींव रख देती है। क्या वह गैंगस्टर बचपन से ही गैंगस्टर था… क्या यह जुर्म उसका अकेले का होता है। कौन जिम्मेवार होता है, उन सब को सज़ा क्यों नहीं मिलती! उसके माता-पिता उसके घर के अन्य व्यक्ति उसके शिक्षक उसके मित्र सभी ही तो उसमें उसके जुर्म के भागीदार होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति प्रसिद्ध होता है, कोई महान लेखक, कलाकार बनता है हम सब उसके आसपास के वातावरण को सराहते हैं। मीडिया उसके घर के लोगों का, शिक्षकों का, दोस्तों का इंटरव्यू लेते हैं क्योंकि हम सबका मानना है कि उसकी कामयाबी में इन सबका भी कुछ न कुछ योगदान है तो हम यह क्यों भूल जाते हैं कि उसी तरह एक बुरा इंसान एक गैंगस्टर के इन असामाजिक कार्यों में उसके आसपास के वातावरण का भी उतना ही योगदान है। और उसकी शुरुआत उस भोले बचपन की एक मासूम-सी गलती से होती है जो वह कभी-कभी अनजाने में कर देता है। और फिर गलती पर गलती करते-करते
एक आम इंसान भोला मन एक खतरनाक अपराधी, गैंगस्टर या माफिया किंग बन जाता है। इस सारी प्रक्रिया में वह क्या से क्या बन जाता है वह खुद भी बेखबर रहता है। कुछ शक्ति का नशा और पैसों का रौब उसे जिंदगी की सच्चाइयों से बहुत दूर ले जाते हैं। जहां वह अकेला होता है। और फिर जेल, सजा कभी-कभी एनकाउंटर भी। कितना दुखद है ये सब देखना-सुनना। गुस्से या प्रतिशोध की बजाय उस इंसान पर तरस आता है। क्या उसे एक जिंदगी जीने का अधिकार नहीं था… क्या उसकी जिंदगी की कोई कीमत नहीं थी। क्यों वह इस दुनिया से चला गया। क्या उसके जाने से उसके घर के लोगों को दुख नहीं!
बस इसका कसूर इतना था कि उसे कोई सही मार्गदर्शक नहीं मिला जो उसे उस एक गलती के लिए डांट लगाता या कोइ सज़ा देता, जिससे कि वह भविय में फिर ऐसी गलती न करता। कभी-कभी बहुत प्यार के कारण माता-पिता भी गलतियों को छुपा देते हैं। और यह सोच कि बड़े होकर ये अपने आप ही समझ जायेगा। अध्यापक भी कभी-कभी गलत रवैया अपनाते हैं। वे उसे समझाने की बजाय डांट देते हैं पर गलत तरीके से। ये डांट और गलत तरीका उसे विद्रोही बना देता है। एक छोटा-सा पौधा विद्रोह के लिए तैयार होने लगता है जो बाद के वर्षों में एक विशाल पेड़ बन जाता है। इसके दुखद परिणाम हमारे सामने हैं।
हम सब इसके लिए दोषी है, माता-पिता, भाई-बहन, अध्यापक और मित्र भी। आज इस सामाजिक और आर्थिक दौड़ में जब हर कोई दौड़ रहा है, हमें इस तरह के कोमलमन को पढ़ना चाहिए। उसे सही दिशा-निर्देश देने चाहिए। ताकि किसी माफिया किंग, गैंगस्टर या बुरे व्यक्ति की नींव न पड़े। उस भटकती हुई कोपल को वहीं नष्ट कर दिया जाये, उसके पेड़ बनने से पहले। हम चाहे बच्चों को बहुत सारी सुविधाएं न दे पायें परंतु उन्हें एक सकारात्मक सोच जरूर दें,यही हमें प्रण लेना चाहिए एक सुखद जीवन के लिए…
मार्गदर्शक… मासूमियत… सुखद जीवन
B.M. Tiwari
आधा भरा हुआ गिलास भरा हुआ ही माना जायेगा जो भाग खाली होता है हम उसी को देखते हैं। सही बात है। विचार से सहमत हूं। लेख के लिए साधुवाद! प्रतीक्षा में…
Alka
Thought provoking article
BM Tiwari
लेखिका ने सही कहा है जीवन में अनुशासन बहुत जरूरी है, बिना अनुशासन के सृष्टि भी नहीं चल सकती। लेख के लिए साधुवाद!