अज्ञातवास
महाभारत में भी तो
था अज्ञातवास एक बरस का
न दिखने का
न मिलने का
न था कोई साधन
न परिजनों से बात करने का
कितने रहे अड़िग वो
नहीं गिरे अपने वचन से
पूर्णतया अज्ञातवास में
समर्पित होकर निखरे
और
अब इस युग में
इस महामारी में
साधन सम्पन्न होते हुए
हम घर की दहलीज में
कुछ दिन क्यों नहीं रह सकते
घर!
जहां है असंख्य घर के भीतर घर
संवादों का घर
सबको परखने का घर
भावों का अविरल घर
पीड़ा सुनने, बांटने का घर
बहुत पल मिल जाएंगे
खुद से गुफ्तगू करने को
सबसे कुछ अनकहा कहने को
कितने बरसों से दबे भावों के
मुखर करने का
अपने अहम को छोड़ने का
खामोशी को तोड़ने का
उठो न!
आओ अपने घर में घूम आएं
बरसों से पड़े जालों को उतार लाएं
अज्ञातवास से निकल कर
अपने मन के आंगन में आएं
आओ!
भावों को बांटकर
इस कायनात में
उदास हवा को खुशनुमा बनाएं
दहलीज से भीतर कुछ दिन बिताएं…
@ नीना दीप
Amit Sharma
Great. That’s nice and deep thoughts.
Parveen
Really a well written a old concept of Mahabharata as compare to current corona virus lowdown in India.
Kanchan Advaita
Very nice.beautiful
Aruna
Very nice and inspiring
Alka
Beautiful. Nice thoughts